
( तर्ज : ॐ जय जगदीश हरे )
ॐ जय कार्त्तवीर्य हरे ,
ॐ जय सहस्रबाहु हरे ।
हम भक्तों के कष्ट प्रभु ,
हर पल दूर करें ।। ॐ जय ।।
कार्तिक सुदी सप्तमी पर ,
वसुंधरा धन्य तरे ।
विष्णु कृपा से चक्र सुदर्शन ,
कार्तवीर्य रूप धरे ।। ॐ जय ।।
दस वर दीन्हि गुरुदत्ता ,
सहस्र भुजा धरे ।
क्षात्र धर्म की दीक्षा लेकर ,
जन कल्याण करे ।। ॐ जय ।।
अष्ठ सिद्धी नव नीधि के ज्ञाता ,
बीज मंत्र धरे ।
सप्तद्वीप जीत कर प्रभु जी ,
अश्वमेध यज्ञ करे ।। ॐ जय ।।
लंका पति रावण का ,
अभिमान चूर करे ।
बंदीगृह में शीश पर ,
ग्यारह दीप धरे ।। ॐ जय ।।
गदा, त्रिशूल, धनुधारी ,
रत्कांबर तन धरे ।
अक्षत, चंदन, षुष्प चढावे ,
धृत का दीप जरे ।। ॐ जय ।।
वेद पुराण में यश गाथा ,
नारद गान करे ।
सुख संपत्ति फल पावे ,
जो नित्य ध्यान धरे ।। ॐ जय ।।
दीन बन्धु दु:खहारी ,
तुमसे विनय करें ।
भारत जन करे आरती ,
सबकी विपदा हरे ।। ॐ जय ।।
ॐ जय कार्तवीर्य हरे ,
ॐ जय सहस्रबाहु हरे ।
हम भक्तो के कष्ट प्रभु ,
हर पल दूर करें ।। ॐ जय ।।
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रचनाकार : भरतलाल बाबूलाल जी जायसवाल
इन्दौर : मो. नंबर 93015 49650





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