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कार्तिक मास में जब सूर्य नीच तुला राशि मैं होता है , तो रात्रि मान अधिक हो जाया करता है, और दिनमान कम रहता है इस कारण अमावस्या को अंधकार अधिक होता है , और वैसे भी कार्तिक मास के अधिपति भगवान सहस्रार्जुन जी है और उनको कार्तिक मास में अंधकार प्रिय नहीं है क्योंकि कार्तिक मास में ही उनका जन्म हुआ था और कार्तिक मास के अधिपति हैं ।इस कारण उन्होंने इस अंधकार को मिटाने के लिए दीपदान को चुना । वैसे भी उन्होंने रावण के दस सिरों पर दस दीप जला कर के तथा महिष्मति नगरी में रावण को पराजित करने के उपरांत दीप जलाकर सर्वप्रथम दीपावली पर्व के प्रथम जनक बने चूंकि: उनको दीपदान अति प्रिय है । शास्त्रों में वर्णित है …. दीप प्रियो कार्त्तवीर्य: । अर्थात भगवान् कार्त्तवीर्य जी को दीप अति प्रिय है । जहां दीपक जलता है वहां पर तम का नाश होकर प्रकाश होता है । जब व्यक्ति अपने जीवन में अंधकार मय हो जाता है उसको अपने वास्तविक जीवन का ज्ञान नहीं होता है सत्य क्या है असत्य क्या है उसको पता नहीं तब वह कहता है.असतो मा सद्गमय हे .. प्रभु।। मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो । जब उसका ज्ञान रूपी दीपक प्रज्ज्वलित होता है तब वह सत्य के मार्ग पर वढ़ता है अन्यथा असत्य के मार्ग पर भटकता रहता है !
जब जीवन में अंधकार और निराशा फैल जाती है तब भगवान् सहस्रार्जुन जी के सामने दीप जलाकर कहिए ..तमसो मा ज्योतिर्गमय हे … प्रभु !! मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ! दीपक तम के अंदर से चीरकर प्रकाश उत्पन्न करता है !जिन लोगों के मन में व्यक्ति के मन में मृत्यु रूपी भय का घोर अंधकार छा जाता है तब भगवान् सहस्रार्जुन जी को दीप दान करते हुए कहता है…. मृत्योर्मांमृतं गमय हे …प्रभु!! मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो
भगवान् सहस्रार्जुन जी आपको दीप अति प्रिय है और मैं आपकी प्रसन्नता के लिए दीप दान कर रहा हूं आप प्रसन्न होकर मेरा कल्याण करें इस प्रकार से दीपावली पर दीप जलाकर अंधकार का नाश कर अपने जीवन में को प्रकाशित करें
निवेदक:-
राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ/ कलचुरी सेना महाराष्ट्र