प्रतिनिधि/ इंडियन हैडलाइन
4/5 दिसंबर 1971 की तारीख भारत कभी नहीं भूल सकता। 120 भारतीय सैनिकों ने 40-45 टैंकों के साथ आए 3000 पाकिस्तानी सैनिकों को छठी का दूध याद दिला दिया था.
लोंगेवाला की ये लड़ाई दुनिया की सबसे खतरनाक टैंक बैटल्स में से एक मानी जाती है. भारतीय सेना के शौर्य का अंदाजा इस बात से लगाइए कि सिर्फ 2 जवान शहीद हुए और 1 एंटी-टैंक माइन नष्ट हुई.
पाकिस्तानी सेना का प्लान था कि लोंगेवाला में बेस बनाया जाए क्योंकि यहां तक सड़क आती थी. इसके बाद जैसलमेर को कब्जा करने की योजना थी. लोंगेवाला पोस्ट पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन के पास थी. कमांडर थे मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी. पोस्ट को तीन तरफ बाड़ से घेर दिया गया था.
संसदन की प्लाटून ने पैट्रोल के दौरान बॉर्डर पार चहल-पहल देखी. कुछ ही देर में कंफर्म हो गया कि बड़ी संख्या में टैंकों के साथ पाकिस्तानी सेना लोंगेवाला की तरफ बढ़ रही है. धरम वीर को निगरानी का जिम्मा सौंप चांदपुरी ने बटालियन हेडक्वार्टर्स से संपर्क किया. फौरन एक्स्ट्रा फोर्स और हथियार मांगे गए.
‘पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं’
हेडक्वार्टर ने दो विकल्प दिए. एक कि चांदपुरी अपनी पूरी ताकत से हमला रोकने की कोशिश करें. दूसरा वह कदम पीछे लेकर रामगढ़ चले जाएं क्योंकि अगले छह घंटों तक मदद नहीं पहुंच सकेगी. चांदपुरी ने रुकने का फैसला किया. कंपनी को ऐसी जगह तैनात किया गया जहां थोड़ा कंस्ट्रक्शन हो चुका था. यह जगह ऊंचाई पर भी थी जहां से मूवमेंट साफ देखा जा सकता था.
रात 12.30 बजे होंगे जब पाकिस्तानी सेना की तरफ से गोले बरसने लगे. मीडियम आर्टिलरी गन से BSF के दस में से पांच ऊंट मार दिए गए थे. 45 टैंकों का एक पूरा कॉलम पोस्ट की तरफ बढ़ रहा था. सेना के पास वक्त नहीं था कि प्लान करके माइनफील्ड बनाई जाए. जल्दी-जल्दी में एंटी-टैंक माइंस बिछाई गईं.
इंफैंट्री को अब दम साधे इंतजार था पाकिस्तानी फौज का. पाकिस्तानी इंफैंट्री जब आगे बढ़ी तो उन्हें कंटीली तार लगी मिली. उन्होंने इसे माइनफील्ड का इशारा समझा और बमुश्किल 20 मीटर दूर रुक गए. इसी बीच उनका एक खाली फ्यूल टैंक फट गया और इतनी रोशनी हो गई कि जीप पर लगी 106 mm की M40 रिक्वॉइललेस राइफल से पाकिस्तान के दो टैंक उड़ा दिए गए.
धुआं उठा तो कंफ्यूजन और फैल गई. पाकिस्तानी सेना की ओर से माइनफील्ड का पता लगाने कुछ सैनिक भेजे गए. वो खाली हाथ लौटे क्योंकि माइंस वहां थीं ही नहीं. इन सब में दो घंटे गुजर चुके थे. पाकिस्तानी सेना को कम से कम लोंगेवाला पर कब्जे के लिए एक और अटैक करना था.
चालाकी के चक्कर में फंसी पाकिस्तानी फौज
पाकिस्तानी फौज ने गाड़ियां सड़कों से उतार दीं. इस उम्मीद में कि भारतीय फौज थोड़ा रिलैक्स हो जाएगी. टैंक थार की रेत में उतरते ही फंस गए. मेजर चांदपुरी ने फौज को हमले जारी रखने का हुक्म दिया. पाकिस्तानी फौज यूं तो संख्या में कई गुना थी मगर अब बीच में घिर चुकी थी. खुला मैदान था और चांदनी रात में सामने खड़े दुश्मन को निशाना बनाना आसान.
उस रात, M40 राइफल के जरिए आर्मी ने पाकिस्तान के टोटल 12 टैंकों को बर्बाद किया था. कई माइंस का शिकार हो गए. सूरज की पहली किरण निकल आई थी और पाकिस्तानी फौज अब तक लोंगेवाला पर कब्जा तो दूर, उस पोस्ट को कोई खास नुकसान तक न पहुंचा सकी थी.
अब बारी थी एयरफोर्स की. HAL के HF-24 मारुत और Hawker Hunter को भेजा गया. फॉरवर्ड एयर कंट्रोलर मेजर आत्मा सिंह HAL कृषक उड़ा रहे थे. T-10 रॉकेट्स के जरिए पाकिस्तानी फौजियों पर जोरदार हमला हुआ. पाकिस्तानी एयरफोर्स इस पूरी लड़ाई में अब तक कहीं नहीं थी.
IAF के हंटर्स ने टैंक और हथियारबंद गाड़ियों के बीच ऐसी दहशत मचाई कि वे इधर-उधर भागे. थार के रेगिस्तान में बनी इस भूलभुलैया की एक तस्वीर आज इतिहास का हिस्सा है. कई टैंक तो पाकिस्तानी फौजी वहीं छोड़कर भाग गए. पोस्ट के आसपास कुल 100 गाड़ियां मिलीं जो लगभग बर्बाद हो चुकी थीं.
इस जंग के बाद मेजर चांदपुरी को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.