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मंजू के दिल से- शादी के बंधन की गाँठ

आज मंजू की लेखनी कुछ कटु सत्य आप सभी के समक्ष कहना चाहती हैं |

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इंडियन हैडलाइन न्युज/ तुमसर प्रतिनिधी

विचार कीजिएगा ……..
क्या आज शादी के बंधन की गांठ इतनी कमजोर हो गई हैं, या फिर हमारी सोच का दायरा सीमित हो गया हैं | लोग आजकल तलाक को हँसी खेल समझने की भूल करने लगे हैं |
आखिर वजह क्या हैं………

यह बात मैं अपने जिंदगी के अनुभवों के आधार पर कह सकती हूं कि दुनियां में कोई भी जीवन-साथी ऐसे नहीं होगे,जिनकी विचार धारा में जरा भी भिन्नता न होकर, दोनों की विचारधारा बिल्कुल एक जैसी हो | लेकिन इसके बावजूद भी कई जीवन-साथी आपस में सामंजस्य बैठाते हुए अपनी पचासवीं शादी की वर्षगांठ भी खुशहाली भरा जीवन साथ-साथ जीते हुए मनाते है |

इसके पीछे एक ही वजह होती है कि जब दो लोग एक ही बंधन में बंधते है, उस वक्त उनकी विचार धाराएं भिन्न-भिन्न होना स्वाभाविक सी बात है क्योंकि उनकी परवरिश अलग-अलग परिवार में होती है। हर परिवार में भिन्नताएं तो होगी ही और जब परिवार में भिन्नता होगी, तो उनकी परवरिश में भी अंतर होगा और परवरिश में अंतर होगा तो दोनों के रहन-सहन और आचार-विचार में भी भिन्नता
होगी । इसके बावजूद भी जब एक बंधन में बंधे है, तो कुछ तो ऐसी बात जरूर होगी, जो हमें एक बंधन में बांधती हैं और साथ में रहने को हम अपनी मर्जी से बाध्य हो जाते है।

जब जिंदगी एक दूसरे के साथ शुरू होती है तब शुरुवात में एक दूसरे को समझने में बहुत सी दिक्कते आती है। कई बार एक दूसरे के बीच टकराव की स्थिति भी पैदा होती हैं। आप लोगों ने अक्सर देखा होगा जब हम गाड़ी चलाना सीख रहे होते है, तब हमें पहले तो बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है | क्योंकि हमारे लिए सबकुछ एकदम नया होता है फिर धीरे-धीरे समय के साथ-साथ हमें अनुभव आ जाता है | तब हमारे लिए गाड़ी चलाना बहुत ही आसान हो जाता है। ठीक उसी प्रकार ये हमारी जिंदगी की गाड़ी है जिसमें दो पहिए है, दोनों पहियों को एक-दुसरे को संभालते हुए आगे बढ़ना पड़ता है। दोनों के बिना गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाती, दोनों एक-दूसरे के पूरक है | जिंदगी के इस सफर में एक बात दोनों को ध्यान रखनी पड़ती हैं कि उनके बीच अहम का कोई किरदार न हो | तभी एक-दूसरे को समझना बहुत ही आसान होता हैं |

आप सभी ने कोई न कोई फिल्म तो जरूर देखी होगी | तो एक बात बताईये, क्या फिल्म की पूरी कहानी एक ही तर्ज पर बनी मिलती हैं ! नहीं न? कहानी में अलग-अलग किरदार न हो तो कहानी में मजा ही नहीं आएगा। ऐसे ही हमारी जिंदगी की यह कहानी है जिसमें कभी छोटी-मोटी नोक-झोंक वाले दृश्य भी होते है, ऐसा न हो तो जिंदगी में नीरसता आ जाएगी |

मेरे हिसाब से तो जीवन में कोई भी इंसान सर्वगुण सम्पन्न नहीं
होता | हर किसी में कुछ न कुछ कमी है और जब जीवन-साथी एक-दूसरे को उनकी कमियों के साथ सहर्ष स्वीकार करते है | तभी धीरे-धीरे जिंदगी में एक समय ऐसा आता है कि दोनों ही अपनी-अपनी आदतों में खुद ब खुद बदलाव करके एक-दूसरे के अनुसार खुद को ढाल लेते है और पता भी नहीं चलता कि कब दोनों में बदलाव आ गया | फिर एक समय बाद दोनों की जीवन की गाड़ी बखूबी चलने लगी । पता तो तब चलता है, जब जीवन के सफर में साथ चलते-चलते दोनों एक-दूजे की कमजोरी बन कर रह जाते है | दोनों की रूह बस एक-दूसरे से जुदा होने के एहसास से भी कांप उठती हैं |

आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि जब हम फूलकी चाट खा रहे होते है तब वह चाट वाला हमें उस चाट में पहले फुलकी के ऊपर खटाई, मिर्ची, मीठी चटनी और थोड़ा नमक डालकर देता है ना!!! कभी अगर उसके हाथ से मीठी चटनी ज्यादा हो जाती है तो हम दुबारा अपनी प्लेट में उसे मिर्ची और खट्टी चटनी डालने कहते है, क्योंकि हमें मजा नहीं आता, जब तक उसका स्वाद कुछ खट्टा, मीठा और तीखा न हो। ठीक उसी प्रकार हमारी यह जिंदगी है, जिसमें हर स्वाद का मजा लेते हुए आगे बढ़ते रहना अच्छा लगता हैं | धैर्य, साहस और संयम के साथ आगे बढ़ने का नाम ही जिंदगी है |

“जो आसानी से समझ आ जाए उसे कहानी कहते है |
और जो धीरे-धीरे समझ आए उसे जिंदगानी कहते है ||”
स्वरचित
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)

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