इंडियन हैडलाइन न्यूज़/ भंडारा प्रतिनिधि
दिल चाहता है पंछी सा उड़ना।
आगे ही आगे हर पल बढ़ना।
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की ऊंचाई पर चढ़ना।
चाहे पड़े कई-कई बार गिरना संभलना।।
मेरे सपने है बहुत अलग से।
मैं सोचती हूं लोगों से।
बस थोड़ा सा हट के।
इन नजरों ने है कुछ ख्वाब बुने।।
तय करती हूं जीवन का सफर।
हर कदम पर थोड़ा संभल संभलकर।
कदमों को लेकिन न थमने देती मगर।
ताकि आसान लगे जीवन की हर डगर।।
अच्छा लगता है मुझे समय के साथ-साथ चलना।
थोड़ा सा कभी खुद अपनों के हिसाब से ढलना।
कभी उनकी खुशी के लिए खुद को बदलना।
कभी खुद संभलना कभी उन्हें संभालना।।
मंजू की लेखनी का है यही कहना।
जो मन कभी जीवन के सफर में।
इधर-उधर पगडंडियों में जो भटके।
खींच लाना उसे हाथ पकड़के।
तभी तो पूरे होंगे तुम्हारे सपने।
जो देखे थे कभी तुमने अपने लक्ष्य के।।
जो जीवन की डगर खुशहाल है तुम्हें जीना।
कभी खुद के लिए, कभी अपनों के लिए।
समय के संग-संग हर पल चलना।
कभी उन्हें खुद में ढालना और कभी तुम्हें है ढलना।
हर दम अपनों के संग।
कदम से कदम मिलाकर ही आगे बढ़ना।।
दिल चाहता है पंछी सा उड़ना।
आगे ही आगे हर पल बढ़ना।।
स्वरचित
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)
8788867704