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इंडियन हैडलाइन न्यूज़/ तुमसर प्रतिनिधि
रुद्राक्ष, जिसे वर्तमान वैज्ञानिक भाषा में एलियोकार्पसगैनिट्रस रॉक्सब कहते है, यह हमारे ऋषिमुनियों, जो की वैज्ञानिक थे, द्वारा खोजा हुआ एक ऐसा फल है जो औषधी का काम करता है । रुद्राक्ष का किसी जाति से, समुदाय से या संस्कृति से कोई लेनादेना नही होता । ये बात अलग है की आरंभ में जिन्होंने रुद्राक्ष की प्रथम खोज की वह सनातनी लोग थे लेकिन इसका अर्थ ये नही है की इसपे अधिकार सिर्फ सनातन वर्ग का ही है क्योंकि रुद्राक्ष एक औषधी है और औषधी किसी की व्यक्तिगत या किसी व्यक्ति समूह की नही मानी जा सकती । वह सभी के लिए उपयोगी है और किसी भी धर्म या जाति का व्यक्ति उसे पहन सकता है और उसका लाभ ले सकता है ।
रुद्राक्ष के पेड़ बीस मीटर तक बढ़ते हैं और आमतौर पर हिमालय की तलहटी, गंगा के मैदान में, नेपाल के पहाड़ी और इंडोनेशिया, जावा और सुमात्रा के पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते है। हिमालय से चीन, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया, गुआम और हवाई में रुद्राक्ष के पेड़ पाए गए हैं । रुद्राक्ष के पेड़ से लगे फल जब पूरी तरह से पक जाते है तब रुद्राक्ष बीज उन पके हुए फलोंके बाहरी नीले छिलके से ढके हुए होते हैं और इन्हें ब्लूबेरी बीड्स के रूप में भी जाना जाता है। सूखा रुद्राक्ष पके फल से प्राप्त होता है
रुद्राक्ष को शारीरिक रूप से धारण करने के फायदे उसके औषधीय गुणों में छुपे हुए है । अध्ययन से पता चला है कि रुद्राक्ष का विद्युत चुम्बकीय गुण शरीर के ऊर्जा चक्र को सक्रिय करता है, जो बदले में मानव शरीर के बायोइलेक्ट्रिकल गुणों को प्रभावित करता है जिससे कई विकार जैसे तनाव, चिंता, एकाग्रता की कमी, अनिद्रा, अवसाद, तेज धड़कन, नसों में दर्द, मिर्गी, माइग्रेन, दमा, उच्च रक्तदाब, मधुमेह, गठिया और यकृत रोग के निवारण में सहायता प्राप्त होती है । संशोधनकर्ताओं ने कहा है कि पहना हुआ रुद्राक्ष, विद्युत चुंबकत्व के ऊपर कार्य करता है और मानव शरीर की बायोइलेक्ट्रिक ऊर्जा पर नियंत्रण का काम करता है जिससे मन-शरीर का समन्वय प्रस्थापित होकर स्वास्थ्य का लाभ होता है।
कुछ संशोधनकर्ताओं द्वारा एक प्रयोग किया गया जिस में १५ लोग के दो समूहों बनाए गए । समूह-१ के लोगों ने रुद्राक्ष धारण किया और समूह-२ के लोगों ने नही किया। कुछ माह पश्चात समूह-१ और समूह-२, दोनों के नमूना रक्त और सुबह के पहले मूत्र के नमूने का जैव रासायनिक विश्लेषण किया गया। परिणामों में यह पता चला की रुद्राक्ष नही पहनें हुए लोगों की तुलना में रुद्राक्ष पहनें हुए लोगों का हीमोग्लोबिन, आरबीसी, डीएलसी और टीएलसी की मात्रा उत्कृष्ट स्थिति में हैं।
संशोधनकर्ताओं ने बताया कि रुद्राक्ष पहननेंवाले के मस्तिष्क के विद्युत चुम्बकीय आवेगों पर अविश्वसनीय शक्ति नियंत्रण करता है और मानव मस्तिष्क को एक ही लक्ष्य पर केंद्रित करने में बड़ी सहयता प्रदान करता है। अध्ययन में कहा गया है कि रुद्राक्ष का विद्युत चुंबकत्व मस्तिष्क में ग्रे और सफेद पदार्थ को प्रभावित करता है, जिससे हमारी छठी इंद्री प्रभावित होती है। रुद्राक्ष मनका के मात्रात्मक विद्युत गुणों और संभावित जैव रासायनिक और खनिज संबंधी घटकों की बायोइलेक्ट्रिक गुणों के अध्ययन से संकेत मिले हैं की रुद्राक्ष में २७ महत्वपूर्ण खनिजों अपने परिवर्तनीय विद्युत गुण के साथ उपस्थिति रहते हैं ।
वर्तमान विज्ञान के मानक जैसे के इन विट्रो, इन विवो के माध्यम से की गई रुद्राक्ष के औषधीय गुणों का परीक्षण और नैदानिक अध्ययनों के क्रिया के तंत्र से प्रमाण जुटाने में अभी भी गहन शोध एवं अध्ययन करने की एक मजबूत आवश्यकता है।
दो तरह के फल माने जाते है, रुद्राक्ष और भद्राक्ष । रुद्राक्ष जिसे हम असली फल कहते है और भद्राक्ष जिसे हम लकड़ी का टुकड़ा मानते है । वास्तव में देखा जय तो दोनो ही लकड़ी की संज्ञा में आते है मगर दोनो में फर्क है । एक ठोस होता है तो दूसरा पोकला होता है । एक पानी में डूबता है तो दूसरा पानी में नही डूब पाता। लेकिन मनुष्य को मिलने के बाद में अगर उस मनुष्य की सात्विक ऊर्जा और विद्युत चुम्बकीय शक्ति अगर भद्राक्ष को परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखती है तो वह भद्राक्ष भी रुद्राक्ष में परिवर्तित हो सकता है । रुद्राक्ष का बल जितना होता है उससे अधिक बल जो पहननेवाले होता है अगर उसका रुद्राक्ष के साथ संयोजन बन जाए तो वह रुद्राक्ष उसे अधिक फल देता है जितना उसे देना चाहिए । रुद्राक्ष के अपने गुण और पहननेवाले के गुण अगर ये दोनो मिल जाए तो उसका लाभ अधिक होता है ।
रुद्राक्ष हमारे भीतर के सात्त्विक, राजसिक और तामसिक तत्व को शांत और संतुलित करता है और सात्त्विक तत्त्व को प्रधानता देने के लिए प्रेरित करता है अर्थात नकारात्मकता को कम करके सकारात्मकता को बढ़ाता है । रुद्राक्ष में पूरी तरह से वैज्ञानिक तत्त्व होते है । रुद्र कहते है अग्नि को और अग्नि प्रतीक है शुद्धता और पवित्रता का और उससे जो रस टपकता है उसे रुद्राक्ष कहा जाता है ।
सुमित कुमार महायोगी अवधूत तुमसर