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माँ के नव रूप

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नवरात्र जो आए है ।

उनमें माँ के नौ रूप समाए है |

माँ के हर रूप की है अपनी ही महिमा |

तुम ही तो हो हमारी जीवन नैय्या की खिवैया |

तुम जो पहले रूप में चली आई हो |

शैल पुत्री तुम हिमराज की सुता कहलाई हो |

दूसरे दिन जो दुखियों के दुःख हरने आई हो | 

माता रूप तुम ब्रम्ह चारणी का पाई हो |

जब-जब तृतीया के दिन तुम चली आई हो |

देख तुम्हें दुष्ट है घबराते, 

थर-थर कांपने वे लग जाते |

माँ चंद्र घटा तुम्हें सभी बुलाते |

जब-जब आता चतुर्थ दिन तुम्हारा |

सबका मन उल्लास से भर जाता 

कुश्मांडा माँ तुम हो कहलाती 

जब-जब पंचमी है आती 

स्कंदमाता के नाम से कार्तिकेय संग हो पूजी जाती 

कात्यान ऋषि की सुता तुम छंटवे दिन जब हो आती 

कात्यायनी नाम से हो पूजी जाती 

दुष्टों का बेडागर्क करने इस धरती पर तुम जब आती 

कालरात्री तब हो कहलाती 

हे माँ तुमसे है यही विनती सभी की 

दुष्टों का वध तुम्हें है करना 

भृष्टाचार के प्रकोप से इस धरती को तुम बचाना 

अष्टमी के दिन घर-घर चली आती 

कन्याओं के रूप में तुम हो पूजी जाती 

कुंदन सुमन सा है रूप लिए होती 

महा गौरी के रूप में तब पूजी जाती 

नौवै रूप में जब माँ तुम आती 

सिद्धि देने वाली तुम ही तो कहलाती 

सुख समृद्धि और मोक्ष की माता तुम ही 

नौ दिन एक ही बात हो सबको समझाती 

जैसे सब नवरात्र में घर-घर मैं पूजी जाती 

बस वैसे ही हर कन्या, हर नारी में रूप है मेरा ही समाया 

लेकिन इतनी सी बात ए इंसान तू अब तक क्यों न है समझ पाया 

जैसे करते नौ दिन मेरी पूजा

वैसे ही इस धरती पर नारी को जो हर दिन सम्मान मिलेगा 

इस संसार में कभी कोई फिर दुःख संकट का भागीदार न बनेगा 

सबका भविष्य तब ही उज्जवल नजर आएगा 

जो इन नौ दिनों में छिपे माँ के संदेश को यह संसार समझ जाएगा 

नवरात्र जो आए है ।

उनमें माँ के नौ रूप समाए है

स्वरचित

                          मंजू अशोक राजाभोज

                           भंडारा (महाराष्ट्र)

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